|
२९ सितंबर, १९७१
विजय-दशमी
आज वह स्पष्ट, बहुत स्पष्ट था, एक जोरका 'दबाव' था यह कहनेके लिये : 'विजय' सामंजस्य है; 'विजय' भगवान् है; और शरीरके लिये 'विजय' अच्छा स्वास्थ्य है । हर एक, हर एक बीमारी, सभी रोग मिथ्यात्व हैं । वह अनुभूति आज सवेरे आयी । वह बहुत स्पष्ट थी । वह विश्वासोत्पादक थी । तो यह ठीक है ।
बात ऐसी है मानों 'दबाव' के कारण सारा 'मिथ्यात्व' निकल आया हैं । परिस्थितियोंमें, चीजोंमें और लोगोंमें -- एकदम अप्रत्याशित चीजें आ रही हैं । यह सचमुच... कोई कल्पना इसकी बराबरी नहीं कर सकती । यह अविश्वसनीय है ।
लेकिन यह एक अच्छी निशानी है, न?
हां, हां, जरूर... । यह तो ऐसा है मानों अंदर जहर था, है न? जा दबानेसे बाहर निकल आया है और अब जानेको है -- वह बाहर नीकल रहा है!...
बादमें, इसके बारेमें बात की जा सकेगी । यह सचमुच मजेदार
है, सचमुच । हां, यह एक अच्छा चिह्न है, यह बहुत अच्छा चिह्न है ।
जी, इसका मतलब यह हुआ कि वे सब शक्तियां जो हज़ारों बर्षोंसे नीचे छिपी...
हां ।
... वे अपना सहारा खो बैठी है ।
हां, ऐसी ही बात है । ऐसी ही ।
देखेंगे । अभी इस विषयमें बात नहीं की जा सकती । बादमें । अविश्वसनीय, वत्स!
लेकिन एक 'शक्ति'! 'शक्ति'! ओह! (माताजी आंखें बंद कर लेती और मुस्कराती हैं) ।
|